सहजन की खेती: कैसे शुरू करें और अधिक मुनाफा कमाएं?
सहजन, जिसे अंग्रेजी में Moringa कहा जाता है, एक चमत्कारी पौधा है जिसे “ड्रमस्टिक ट्री” के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खेती न केवल किसानों के लिए लाभदायक है, बल्कि यह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है। इस लेख में, हम सहजन की खेती से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियों पर चर्चा करेंगे और यह समझेंगे कि यह पौधा किस तरह से हमारी जीवनशैली को बेहतर बना सकता है।
सहजन की पहचान और विशेषताएँ
सहजन का पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह एक ऐसा पौधा है जो कम पानी और कम उपजाऊ जमीन पर भी अच्छे से उग सकता है। इसके फल, पत्ते, फूल और जड़ें पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।
- वैज्ञानिक नाम: Moringa oleifera
- उत्पत्ति: भारत
- प्रमुख उत्पादक राज्य: तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश।
सहजन का उपयोग भारतीय चिकित्सा पद्धतियों जैसे आयुर्वेद में भी किया जाता है। इसे 300 से अधिक बीमारियों के इलाज में प्रभावी माना जाता है। इसके पत्तों का उपयोग हरी सब्जी, पाउडर और चाय के रूप में किया जाता है।
सहजन की खेती की प्रक्रिया
1. भूमि का चयन
सहजन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। भूमि का पीएच स्तर 6.2 से 7.0 के बीच होना चाहिए। ध्यान रखें कि जल निकासी की व्यवस्था अच्छी हो। यदि मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो, तो यह सहजन के विकास के लिए और भी अनुकूल हो जाती है।
2. जलवायु और तापमान
सहजन उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से पनपता है। इसे 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इसे अधिक ठंडे या पाले वाले क्षेत्रों में नहीं उगाया जा सकता। हालांकि, गर्म और शुष्क जलवायु में भी यह अच्छे परिणाम देता है।
3. बीज की तैयारी
सहजन के बीजों को बोने से पहले उन्हें साफ पानी में 24 घंटे तक भिगो दें। इससे बीज जल्दी अंकुरित होते हैं। सहजन के बीज अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिए और प्रमाणित स्रोत से खरीदे जाने चाहिए। यदि आप बीज उपलब्ध नहीं कर सकते, तो सहजन की कलम विधि एक बेहतर विकल्प हो सकती है।
4. बुवाई का समय
भारत में सहजन की बुवाई के लिए दो मुख्य मौसम हैं:
- मॉनसून: जून-जुलाई
- सर्दी: अक्टूबर-नवंबर
इन मौसमों में मिट्टी में नमी का स्तर उपयुक्त रहता है, जिससे सहजन के पौधों को शुरुआती बढ़त में मदद मिलती है। गर्मियों में बुवाई से बचना चाहिए क्योंकि उच्च तापमान अंकुरण को प्रभावित कर सकता है।
5. बुवाई की विधि
सहजन की बुवाई दो तरीकों से की जा सकती है:
- बीज द्वारा: बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई में बोएं। पौधों के बीच 3-4 मीटर की दूरी रखें ताकि उन्हें भरपूर स्थान मिल सके।
- कलम द्वारा: 1-1.5 मीटर लंबी और 5-7 सेंटीमीटर मोटी टहनियों का उपयोग करें। इन्हें सीधे खेत में लगाया जा सकता है। यह विधि बीज के मुकाबले तेज परिणाम देती है।
6. सिंचाई
सहजन को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। इसके बाद, 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। ध्यान रखें कि ज्यादा पानी देने से जड़ें सड़ सकती हैं। ग्रीष्मकाल में सिंचाई का अंतराल कम किया जा सकता है।
7. खाद और उर्वरक
सहजन जैविक खेती के लिए उपयुक्त फसल है। आप गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट और नीम खली का उपयोग कर सकते हैं। प्रति हेक्टेयर:
- नाइट्रोजन: 50 किलो
- फॉस्फोरस: 20 किलो
- पोटाश: 25 किलो
इसके अलावा, सहजन के लिए जैविक खाद का नियमित उपयोग मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है और उत्पादन को बढ़ाता है।
8. पौध संरक्षण
सहजन में कीट और रोगों का असर बहुत कम होता है। फिर भी, निम्न समस्याएं हो सकती हैं:
- कीट: फल मक्खी, थ्रिप्स, एफिड्स
- रोग: जड़ सड़न, पत्तियों का झुलसना
रोगों से बचाव के लिए नीम के तेल का छिड़काव करें। जैविक कीटनाशकों का उपयोग पर्यावरण और पौधों के लिए सुरक्षित होता है।
सहजन की कटाई और उत्पादन
1. कटाई का समय
सहजन की फसल 6-8 महीने में तैयार हो जाती है। यदि पौधे की अच्छे से देखभाल की जाए, तो एक साल में तीन बार फसल प्राप्त की जा सकती है। फसल की कटाई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए ताकि पौधे को अतिरिक्त तनाव न हो।
2. उत्पादन क्षमता
सहजन का औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर 30-35 टन होता है। अच्छी खेती प्रबंधन से यह उत्पादन बढ़कर 40-50 टन तक पहुंच सकता है।
3. भंडारण और परिवहन
सहजन के फल और पत्तियों को लंबे समय तक ताजा बनाए रखने के लिए उचित भंडारण तकनीकों का उपयोग करें। उन्हें छायादार और ठंडी जगह पर रखें। यदि फसल का निर्यात करना हो, तो परिवहन के दौरान उचित पैकेजिंग का ध्यान रखें।
सहजन के उपयोग और लाभ
1. स्वास्थ्य लाभ
- सहजन की पत्तियां विटामिन A, C और कैल्शियम से भरपूर होती हैं।
- यह एंटीऑक्सीडेंट्स का अच्छा स्रोत है।
- मधुमेह, हृदय रोग, और हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में सहायक है।
- पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और त्वचा की गुणवत्ता में सुधार करता है।
2. औद्योगिक उपयोग
- सहजन के बीजों से तेल निकाला जाता है, जो कॉस्मेटिक्स और बायोफ्यूल उद्योग में उपयोगी है।
- इसकी पत्तियां और फल फूड इंडस्ट्री में उपयोग किए जाते हैं।
- इसके पाउडर का उपयोग स्वास्थ्य पूरक आहार के रूप में किया जाता है।
3. पर्यावरणीय लाभ
- सहजन का पौधा मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है।
- यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करता है, क्योंकि यह कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है।
- शहरी क्षेत्रों में इसकी खेती वायु गुणवत्ता में सुधार कर सकती है।
सहजन की खेती से लाभ
- आर्थिक लाभ: सहजन की खेती में कम लागत लगती है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। इसके जैविक उत्पादों की कीमतें अधिक होती हैं।
- रोजगार का सृजन: यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करता है। फसल के प्रबंधन, कटाई, और प्रसंस्करण में लोगों की जरूरत होती है।
- जैविक खेती को बढ़ावा: सहजन की खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती।
निष्कर्ष
सहजन की खेती एक ऐसा विकल्प है जो किसानों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत बन सकता है। यह न केवल आर्थिक रूप से लाभदायक है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। सहजन के बहुआयामी उपयोग इसे एक आदर्श फसल बनाते हैं। यदि आप अपनी खेती में कुछ नया और लाभदायक करना चाहते हैं, तो सहजन की खेती अवश्य अपनाएं। इसके द्वारा न केवल आपकी आय बढ़ेगी, बल्कि आप समाज और पर्यावरण में सकारात्मक योगदान भी देंगे।
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