जिमीकंद की खेती से कैसे कमाएं लाखों! जानें आसान तरीके

जिमीकंद की खेती से कैसे कमाएं लाखों! जानें आसान तरीके

जिमीकंद की खेती

जिमीकंद, जिसे सूरन या एलेफैंट फुट याम (Elephant Foot Yam) भी कहा जाता है, एक लोकप्रिय और लाभकारी कंद फसल है। यह न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि इसके औषधीय गुण इसे स्वास्थ्य के लिए भी अनमोल बनाते हैं। दक्षिण एशियाई देशों, विशेषकर भारत और नेपाल में, इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी बढ़ती मांग इसे एक आकर्षक व्यवसायिक फसल बनाती है। आइए, जिमीकंद की खेती के महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।


जिमीकंद की खास बातें

  • वैज्ञानिक नाम: Amorphophallus paeoniifolius
  • परिवार: Araceae
  • उत्पत्ति: दक्षिण-पूर्व एशिया
  • पोषक तत्व: इसमें फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी6, पोटैशियम, और अन्य खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं।
  • औषधीय गुण: यह पाचन तंत्र को सुधारने, सूजन कम करने और वजन घटाने में मददगार है।

जिमीकंद के औद्योगिक और घरेलू उपयोग इसे एक बहुआयामी फसल बनाते हैं। इसे पारंपरिक व्यंजनों, औषधीय उत्पादों और पैकेज्ड फूड इंडस्ट्री में भी इस्तेमाल किया जाता है।


जिमीकंद की खेती के लिए सही मौसम और मिट्टी

1. मौसम की आवश्यकताएँ

  • तापमान: 25°C से 35°C का तापमान इस फसल के लिए उपयुक्त है।
  • बारिश: 100 से 150 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र आदर्श माने जाते हैं।
  • धूप: आंशिक छाया या पूर्ण धूप दोनों में इसकी खेती संभव है।

2. मिट्टी की आवश्यकता

  • पीएच स्तर: मिट्टी का पीएच 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए।
  • मिट्टी का प्रकार: बलुई दोमट, चिकनी दोमट, और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सर्वोत्तम होती है।
  • जल निकास: खेत में जलभराव से बचाव के लिए उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।

मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए बुवाई से पहले उसकी जांच कराना अत्यंत लाभकारी होता है।


खेत की तैयारी कैसे करें?

1. जुताई और मिट्टी तैयार करना

  • खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और कंदों के विकास के लिए अनुकूल हो।

2. खाद और उर्वरक का प्रबंधन

  • प्रति हेक्टेयर 20-25 टन गोबर की खाद डालें।
  • नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (60:40:60 किग्रा/हेक्टेयर) का उपयोग करें।

3. बीज का चयन और तैयारी

  • स्वस्थ और रोग-मुक्त कंदों का चयन करें।
  • बीज का वजन 500-700 ग्राम होना चाहिए।
  • बीज को ट्राइकोडर्मा जैसे फफूंदनाशक से उपचारित करें।

जिमीकंद की बुवाई का सही तरीका

1. बुवाई का समय

  • मार्च से अप्रैल का समय सबसे अच्छा होता है।

2. बुवाई की पद्धति

  • कंदों को 30-40 सेमी गहरे गड्ढों में लगाएं।
  • गड्ढों के बीच 60-75 सेमी की दूरी रखें।
  • गड्ढों में गोबर खाद, नीम खली और उपजाऊ मिट्टी मिलाएं।

उपयुक्त दूरी और गहराई फसल की बेहतर वृद्धि सुनिश्चित करती है और कीट एवं रोगों से बचाव में मदद करती है।


सिंचाई और जल प्रबंधन

  • बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
  • गर्मियों में हर 7-10 दिन पर पानी दें।
  • मानसून के दौरान सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग जल प्रबंधन में सहायक हो सकता है और पानी की बचत भी होती है।


खरपतवार और रोग नियंत्रण

1. खरपतवार नियंत्रण

  • बुवाई के 30-40 दिन बाद पहली निराई करें।
  • जरूरत पड़ने पर दूसरी निराई भी करें।

2. रोग प्रबंधन

  • तना सड़न और झुलसा रोग: ट्राइकोडर्मा या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
  • पत्ती खाने वाले कीट: जैविक कीटनाशक और नीम तेल का उपयोग करें।

फसल की नियमित निगरानी शुरुआती समस्याओं को रोकने में मदद करती है।


फसल कटाई और भंडारण

1. कटाई का समय

  • बुवाई के 8-10 महीने बाद जब पत्तियां सूखने लगें।

2. कटाई का तरीका

  • फावड़े या हाथ से सावधानीपूर्वक कंद निकालें।
  • कंदों को छायादार स्थान पर सुखाएं।

3. भंडारण के उपाय

  • कंदों को ठंडी और सूखी जगह पर रखें।
  • हवादार और सुरक्षित भंडारण के लिए उपयुक्त गोदाम का उपयोग करें।

जिमीकंद की बिक्री और आर्थिक लाभ

1. बाजार में मांग

  • इसकी मांग स्थानीय मंडियों, औषधीय कंपनियों और प्रोसेसिंग यूनिट्स में अधिक होती है।

2. बिक्री के तरीके

  • पारंपरिक मंडी के साथ-साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग करें।
  • अनुबंध खेती (Contract Farming) के जरिए भी बेहतर दाम मिल सकते हैं।

जिमीकंद की खेती के फायदे

  1. आर्थिक स्थिरता: इसकी उपज और बाजार में अधिक मांग किसानों को अच्छी आय देती है।
  2. जैविक खेती: जैविक तरीके से उगाई गई फसल के लिए प्रीमियम मूल्य मिलता है।
  3. औषधीय गुण: यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, जिससे इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है।
  4. लंबी शेल्फ लाइफ: उचित भंडारण से इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

निष्कर्ष

जिमीकंद की खेती एक लाभकारी विकल्प है जो किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है। उचित तकनीकों और उर्वरक प्रबंधन से यह फसल अधिक उत्पादक बनती है। अगर आप जैविक खेती के तरीके अपनाते हैं, तो न केवल आपकी आमदनी बढ़ेगी, बल्कि आप पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देंगे। आने वाले समय में जिमीकंद की बढ़ती मांग इसे एक महत्वपूर्ण नकदी फसल बना सकती है।

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